एक बड़े होटल में मैंने खाना खाने का मन बनाया,
सकुचाया सा एक युवा वेटर मेरे टेबल पर आया।
ग्लास में पानी डालते वक़्त उसका हाथ कंपकपाया,
अनायास ही, कांच का प्याला उसने फर्श पे गिराया।
दौड़ते हुए उस होटल का मैनेजर आया,
हड़बड़ी में उस युवा ने टूटा हुआ कांच उठाया।
सॉरी सर, मुझे बोल, मैनेजर युवा पे चिल्लाया,
साले पहाड़ी, तूने पहले दिन ही नुक्सान कराया।
मैनेजर का गुस्सा देख वह युवक घबराया ,
पास ही खड़े साथी ने उसे किचन की तरफ भगाया।
कांच से कटे हाथ से खून निकलता देख युवक सकपकाया,
दबंग रहने वाले युवा को अपनी परिस्थिति पर रोना आया।
अपने आप से एक ही सवाल उसने बार बार दोहराया
अपना प्यारा सा घर छोड़, मैं यहां क्या करने आया ?
अपने गाँव के दोस्त छोड़, मैं यहां क्या करने आया ?
अपनी माँ का प्यार छोड़, मैं यहां क्या करने आया ?
हाथ पे पटटा बाँध चल पड़ा वो काम पे,
जब उसे अपने घर का आर्थिक हालात याद आया।
Your expression have the grace of Divine. I loved it Suraj.
Thanx Prerna !!!